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2. जन्तुओं में पोषण
पोषण—सजीवों द्वारा भोजन ग्रहण करने एवं इसके उपयोग की विधि कोपोषण कहते हैं।
जंतुओं में भोजन ग्रहण करने के लिए एवं उसको पचाने के लिए एक विशेष अंग होता है, जिसे आहार नाल कहते हैं। इसकी लंबाई 8 से 10 मीटर होती है।
आहारनाल मुखगुहा से शुरू होकर गुदा या मलद्वार तक जाती है।
वैसे अंग जो भोजन पचाने में सहायता करते हैं। उन्हें सामुहिक रूप से पाचन तंत्र कहते हैं।
आहारनाल के विभिन्न भाग—
1. मुख गुहिका
2. ग्रसिका या ग्रास नली
3. आमाश्य
4. छोटी आँत
5. बड़ी आँत
6. मलाशय
7. गुदा या मलद्वार
मुखगुहा
मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। पाचन मुखगुहा से प्रारंभ होता है। मुखगुहा एक खाली जगह होता है जिसमें एक जीभ, तीन जोड़ा लार ग्रंथि तथा 32 दांत पाये जाते हैं।
मुखगुहा को बंद करने के लिए दो मुलायम होंठ होते हैं।
मनुष्य के मुखगुहा में तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती है, जिससे प्रतिदिन डेढ़ लीटर लार निकलता है।
लार में एमाइलेज एंजाइम होता है।
मुखगुहा में लार का कार्य-
- यह मुखगुहा को साफ रखती है।
- भोजन को चिपचिपा और लसलसा बना देता है।
- यह भोजन में उपस्थित किटाणुओं को मार देता है।
दाँत
दाँत में सर्वाधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।
हमारे जीवनकाल में दाँतों के दो सेट विकसित होते हैं।
प्रथम सेट बचपन में ही निकलकर लगभग 8 साल की आयु तक गिर जाते हैं। प्रथम सेट के दाँत को दूध के दाँत कहते है।
दूध के दाँत गिरने के बाद स्थायी दाँत निकलते हैं, जो जीवनभर रहते हैं।
एक व्यस्क मनुष्य के शरीर में 32 दाँत होते हैं। दुध के दाँतों की संख्या 20 होती है।
मानव दाँत चार प्रकार के होते हैं-
1. इनसाइजर (8)— काटने का कार्य
2. केनाइन (4)— फाड़ने का कार्य
3. प्रीमोलर (8)— पीसने और चबाने का काम
4. मोलर (12)— पीसने और चबाने का काम
मानव दाँत के दो परत होता है। बाहरी परत इनामेल कहलाता है जबकि आंतरिक परत डेंटाइन कहलाता है।
मानव शरीर का सबसे कठोर भाग दाँत का इनामेल होता है। इनामेल दाँतों की रक्षा करता है।
दाँतों की सुरक्षा
सुबह और रात में सोने से पहले दातुन या ब्रश से जरूर साफ करना चाहिए।
खाने के बाद अच्छी तरह से कुल्ली करना चाहिए।
अधिक चॉकलेट, मीठी चीजें, ठण्डे पेय आदि नहीं खाना चाहिए। इससे दाँत खराब होते हैं।
ग्रासनली
यह मुखगुहा को अमाशय से जोड़ने का कार्य करता है। यह नली के समान होता है। ग्रासनली से भोजन अमाशय में पहुँचता है।
आमाशय
यह आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है। इसकी दीवार मोटी होती है। यह U आकार की होती है।
अमाशय से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्राव होता है, जो कीटाणुओं को मार देता है और भोजन को अम्लीय बना देता है।
अमाशय से पाचक रस निकलता है।जो भोजन को पचाने का कार्य करता है।
छोटी आँत
छोटी आँत आहारनाल का सबसे लंबा भाग है।
इसकी लंबाई 6-7 मीटर होती है।
छोटी आँत में ही पाचन की क्रिया पूर्ण होती है।
पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत में ही होता है।
वसा का पूरी तरह से पाचन छोटी आँत में होता है।
यकृत- यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है। यकृत से पित्त का स्त्राव होता है। जो पित्ताशय में जमा होता है।
बड़ी आँत
इसकी लंबाई 1.5 मीटर होती है।
जल का अवशोषण बड़ी आँत में होता है। बाकी बचा हुआ पदार्थ मलाशय में चला जाता है। जहाँ से समय-समय पर गुदा द्वारा मल के रूप में बाहर निकाल दिया जाता है।
मल का गुदा के माध्यम से बाहर निकलना निष्कासन कहते हैं।
जुगाली करने वाले जन्तु तेजी से भोजन निगलकर अमाशय का एक भाग रूमेन में जमा करते हैं। जिसे बाद में जुगाली या पागुर करते हैं।
अमीबा भोजन को कुटपाद की सहायता से ग्रहण करते हैं।
अमीबा मृदुजल में पाया जाता है। यह एककोशिकीय जीव होता है। जिसका आकार अनिश्चित होता है।
अमीबा का भोजन शैवाल के छोटे-छोटे टुकड़े, बैक्टीरिया, डायटम, अन्य छोटे एककोशिकीय जीव तथा मृत कार्बनिक पदार्थ के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि हैं।
अमीबा में भोजन का पाचन खाद्यधानी में होता है।
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