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8. जन्तुओं में रक्त परिसंचरण एवं उत्सर्जन
एक स्वस्थ्य व्यक्ति का शरीर एक मिनट में 72 से 80 बार धड़कता है।
हृदय एक प्रकार का पंपिंग अंग है जो रक्त के साथ पदार्थों के परिवहन के लिए पंप के रूप में कार्य करता है।
हृदय प्रतिदिन लगभग एक लाख बार धड़कता है।
हृदय वक्ष गुहा में स्थित होता है।
हृदय चार कक्षों में बँटा होता है। ऊपरी दो कक्ष आलिन्द कहलाता है और निचले दो कक्ष निलय कहलाता है।
बायां आलिन्द, दायां आलिन्द, बायां निलय और दायां निलय।
जो रक्त को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का कार्य करते हैं, उसे रक्त वाहिनियां (नाड़ी) कहते हैं।
हमारे शरीर में दो प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती है—
- धमनी
- शिरा
धमनी और सिरा में अंतर
धमनियाँ हृदय से ऑक्सीजन वाला रक्त को शरीर के सभी भागों में ले जाती है। जबकि सिराएँ शरीर के सभी भागों से कार्बन डाइऑक्साइड वाला रक्त हृदय तक ले जाती है।
धमनी में रक्त प्रवाह तेजी से और अधिक दाब से होता है। जबकि सिरा में रक्त प्रवाह धीमी गति से और कम दाब से होता है।
धमनी की दीवार मोटी और लचीली होती है जबकि सिरा का दिवार पतली और कपाटयुक्त होती है।
रक्त के कार्य— रक्त परिवहन का कार्य करता है।
- फेफड़ा से ऑक्सीजन लेकर हर कोशिकाओं तक पहुँचाना और हर कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाना।
- मांसपेशियों में बने अपशिष्ट पदार्थ को शरीर के उत्सर्जन अंग तक पहुँचाना
- खाद्य पदार्थों को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाना।
लयबद्ध हृदय को सिकुड़ने और फैलने की क्रिया मिलकर हृदय स्पंदन कहलाता है।
हृदय की धड़कन सुनने वाले मशीन को स्टेथोस्कोप कहते हैं।
रक्त परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे ने किया।
स्पंज और हाइड्रा में रक्त परिसंचरण तंत्र नहीं पाया जाता है।
उत्सर्जन— हमारे शरीर से अनुपयोगी पदार्थों को बाहर निकलना उत्सर्जन कहलाता है। जैसे यूरिया का मूत्र के माध्यम से बाहर निकलना।
अथवा
सजीवों द्वारा कोशिकाओं में बनने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
रक्त से नाइट्रोजन युक्त विशैले पदार्थों को विभिन्न अंगों द्वारा बाहर निकलता है। इन अंगों के समुह को उत्सर्जन तंत्र कहते हैं।
उत्सर्जन तंत्र के अंतर्गत गुर्दा, मूत्राशय, मूत्र नली आदि उत्सर्जन अंग आते हैं।
हमारे शरीर में दो गुर्दा या वृक्क (Kidney) होता है। जो रक्त से हानिकारक पदार्थों (जैसे यूरिया) को छानने का कार्य करता है। हानिकारक पदार्थों को रक्त से छानकर मूत्राशय में जमा करता है।
मूत्र में 95 प्रतिशत जल, 2.5 प्रतिशत यूरिया और 2.5 प्रतिशत अन्य अपशिष्ट पदार्थ होते हैं।
हमारे दोनों किडनी प्रतिदिन लगभग 1100 से 2000 लीटर रक्त को छानने का कार्य करता है।
रक्त प्रत्येक 4 मीनट में एक बाद गुर्दे में शुद्ध होने के लिए जाता है अर्थात लगभग 5.5 लीटर रक्त गुर्दे में शुद्ध होने में 4 मीनट का समय लगता है।
त्वचा के निचली परत में स्वेद ग्रंथियाँ होती है जिससे हमें पसीना आता है। स्वेद में जल और लवण होता है।
पसीना के कारण हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है।
गर्मियों में पसीना में उपस्थित लवण के कारण रंगीन कपड़ों पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं।
डायलिसिस/अपोहन
किसी व्यक्ति के वृक्क काम न करने की स्थिति में डायलिसिस मशीन द्वारा रक्त को शुद्ध करने की विधि को अपोहन कहते हैं।
अपोहन की क्रिया डायलिसिस मशीन द्वारा किया जाता है जो रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को छानने का कार्य करता है।
डायलिसिस मशीन कृत्रिम वुक्क का कार्य करता है।
कभी-कभी हमारे शरीर के हाथ और पैर सुन्न और उसमें झिनझिनी उत्पन्न होने का कारण ऑक्सीजन और पोषणयुक्त रक्त का नहीं मिलना या कम मिलना।
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